शिक्षाशास्त्रियों ने शिक्षा का वर्गीकरण अनेक प्रकार से किया है । हम शिक्षा के प्रकारों का वर्गीकरण निम्न प्रकार कर सकते हैं-
1.औपचारिक शिक्षा
2.अनौपचारिक शिक्षा
3.वैकल्पिक एवं नवाचारी शिक्षा
4.दूरस्थ शिक्षा
1.औपचारिक शिक्षा
शिक्षा का यह साधन बालक को सप्रयत्न शिक्षा देने का कार्य करता है । इसमें शिक्षा देने की योजना अर्थात् समय , स्थान , अध्यापक , विधि एवं पाठ्यक्रम पूर्व निर्धारित होता है । यह संस्थाएँ अपने द्वारा निर्धारित नियमावली का अनुपालन करती हैं । औपचारिक शिक्षा के लाभों पर प्रकाश डालते हुए ड्यूवी ने कहा है , " औपचारिक शिक्षा के बिना जटिल समाज के साधनों और उपलब्धियों को हस्तान्तरित करना सम्भव नहीं है । यह एक ऐसे अनुभव की प्राप्ति का द्वार खोलती है जिसको बालक दूसरों के साथ रहकर अनौपचारिक शिक्षा के द्वारा प्राप्त नहीं कर सकता । "
2.नौपचारिक शिक्षा
उत्तर शिक्षा के अनौपचारिक साधन शिक्षा को एक जीवनपर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया के रूप में देखते हैं । इसका मानना है कि लिखना , पढ़ना या अक्षर ज्ञान प्राप्त कर लेना हो शिक्षा नहीं है । शिक्षा इसमें बहुत अधिक व्यापक तथा विस्तृत प्रत्यय है । शिक्षा वास्तव में वह है जो हम अपने जीवन के अच्छे - बुरे अनुभवों से सीखते हैं और यह अनुभव व्यक्ति जीवनपर्यन्त प्राप्त करता है । बैण्टाक ( Bentak ) के शब्दों में , " शिक्षा सभी प्रकार के अनुभवों का योग है जिसे मनुष्य अपने जीवनकाल में प्राप्त करता है, और जिसके द्वारा वह जो कुछ है , उसका निर्माण होता है । " जे . एस . रॉस ( J.s , Ross ) ने इस सम्बन्ध में लिखा है , " अनौपचारिक शिक्षा बालक द्वारा सभी प्रभाव ग्रहण करना और अपनी प्रकृति से उत्तेजित कर पूर्णतया विकसित करना सिखाती है । " वास्तव में , देखा जाए तो अनौपचारिक शिक्षा जीवन से सम्बन्धित वे अनुभव है जिन्हें हम बिना किसी व्यवस्थित प्रयास , संस्था तथा साधन के स्वाभाविक स्थिति से प्राप्त करते हैं । इस प्रकार की शिक्षा प्रत्यक्ष रूप से जीवन से सम्बन्धित होती है । यह शिक्षा स्वाभाविक रूप से होती है । इसकी न तो कोई निश्चित योजना होती है और न ही कोई निश्चित नियमावली । यह बालक के आचरण का रूपान्तरण करते हैं परन्तु रूपान्तरण की प्रक्रिया अज्ञात , अप्रत्यक्ष व अनौपचारिक होती है ।
3.वैकल्पिक एवं नवाचारी शिक्षा
यह शिक्षा का वह साधन है जिसमें शिक्षा का औपचारिक स्वरूप पूर्ण रूप से नियन्त्रण में होता है । यह शिक्षा को एक सचेष्ट प्रक्रिया के रूप में देखते हैं एवं शिक्षा के विभिन्न आयामों पर नियन्त्रण रखते हैं अर्थात् इसमें शिक्षा का प्रवेश , पाठ्यक्रम , शिक्षण विधि , अध्यापक , छात्र , शिक्षा के उद्देश्य व शिक्षा की व्यवस्था पूरी तरह से औपचारिक होती है परन्तु इसके साथ ही इसमें शिक्षा के अनौपचारिक स्वरूप को भी नियन्त्रित किया जाता है । निरौपचारिक शिक्षा में शिक्षा न तो पूर्णतया नियन्त्रित होती है और न ही पूर्णतया अनियन्त्रित वरन् यह इन दोनों का सम्मिश्रण है । शिक्षा की इस अवधारणा के अन्तर्गत शिक्षार्थी कई क्षेत्रों में नियन्त्रित होता है एवं कई क्षेत्रों में अनियन्त्रित होती है । इसमें प्राय : आयु स्थान , शिक्षण विधि पर नियन्त्रण नहीं होता जबकि पाठ्यक्रम , परीक्षा , समय आदि की सीमा निश्चित होती है ।
4.दुरस्थ शिक्षा
शैक्षिक जगत में दूरस्थ शिक्षा एक नवीन प्रवृति के रूप में गत कई दशकों से प्रचलित है । प्राचीन परम्परा के अनुसार शिष्य गुरु के सम्मुख उपस्थित होकर शिक्षा प्राप्त करता था । गुरु - शिष्य की शिक्षा पद्धति एक ही स्थान पर आमने - सामने बैठकर शिक्षा के आदान - प्रदान की होती थी । परिवर्तन चक्र के सामाजिक , आर्थिक , शैक्षिक समीकरणों के बदलाव ने नवीन तकनीकों को जन्म दिया । परम्पराएँ बदलीं , शिक्षा का जन्म हुआ । जनसंख्या वृद्धि , संसाधनों की कमी , विद्यालयों - महाविद्यालयों विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों के लिए सीटों की प्रतिबंधात्मक संख्या ने दूरस्थ शिक्षा के प्रति रुचि जागृत की है तथा दूरस्थ शिक्षा ने भूमण्डलीयकरण का रूप ग्रहण कर लिया । आज भारत के गाँव में बैठा विद्यार्थी ब्रिटेन के कैम्ब्रिज व ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालयों की शिक्षा इण्टरनेट से ग्रहण कर सकता है । दूरस्थ शिक्षा उन विद्यार्थियों के लिए एक वरदान है , जिनको मनचाहे शिक्षण संस्थानों में प्रवेश नहीं मिल सका । कर्मचारियों , विकलांगों , आर्थिक रूप से अभावग्रस्त श्रमिकों , कृषकों व गृहणियों के लिए दूरस्थ शिक्षा एक ऐसा तोहफा है जो आधुनिक तकनीक की देन है । निर्जन क्षेत्र हों , देश के दूरदराज क्षेत्र हों , दूरस्थ शिक्षा का प्रकाश उस अंधकार में उजाला ला सका है । आधुनिक युग में दूरस्थ शिक्षा एक महत्त्वपूर्ण व लोकप्रिय उपागम के रूप में मान्यता प्राप्त कर चुकी है ।
दुरस्थ शिक्षा का तात्पर्य
दूरस्थ शिक्षा का अर्थ है - दूर रहकर शिक्षा को प्राप्त करना । दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रम के अन्तर्गत शिक्षा प्रदान करने वाले और शिक्षा प्राप्त करने वाले के मध्य दूरी होती है । परम्परागत शिक्षा के अन्तर्गत गुरु - शिष्य एक - दूसरे के आमने - सामने होते हैं , जबकि दूरस्थ शिक्षा के आदान - प्रदान करते समय गुरु - शिष्य एक - दूसरे को देख भी नहीं सकते । विद्यार्थी को ज्ञान डाक द्वारा अथवा इण्टरनेट द्वारा पहुँचता है ।
बी . होल्मबर्ग ने दूरस्थ शिक्षा को इन शब्दों में परिभाषित किया है " दूरस्थ शिक्षा अध्ययन की अनेकों पद्धतियों में से एक है , जो प्रवक्ता कक्ष में उपस्थित अध्यापकों के लगातार पर्यवेक्षण से रहित है एवं जिनमें वे सभी अध्यापन पद्धतियाँ सम्मिलित हैं जिनमें मुद्रण , यांत्रिक अथवा इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों द्वारा शिक्षा प्रदान की जाती है । "
उपरोक्त परिभाषा से स्पष्ट होता है कि दूरस्थ शिक्षा में शिक्षा प्रदान करने की विभिन्न पद्धतियाँ सम्मिलित हो सकती हैं परन्तु अध्यापक छात्र का इस शिक्षा पद्धति में कोई सम्पर्क नहीं रहता । दूरस्थ शिक्षा को प्रभावशाली बनाने के लिये विभिन्न सम्प्रेषण साधन प्रयोग किये जा सकते हैं । दूरस्थ शिक्षा की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
1. यह पद्धति आमने - सामने बैठकर अध्ययन करने से सर्वथा भिन्न है ।
2. इस पद्धति में स्व - अध्ययन ( Self - study ) पर अधिक बल दिया जाता है ।
3. इस पद्धति के अन्तर्गत अध्ययन के दौरान विद्यार्थी एवं अध्यापक में सीधा सम्पर्क सम्भव नहीं हो पाता ।
4. इसमें द्वि - मार्गी सम्प्रेषण ( Two way communication ) के द्वारा विद्यार्थी व अध्यापक के मध्य सम्बन्ध स्थापित कर अध्ययन में होने वाली बाधाओं को दूर किया जा सकता है ।
5. दूरस्थ शिक्षा के अन्तर्गत विद्यार्थी एवं अध्यापक के मध्य सम्बन्ध स्थापित करने के लिए रेडियो , दूरदर्शन , वी . सी . आर . , सी . डी . प्लेयर , कम्प्यूटर इण्टरनेट इत्यादि का प्रयोग किया जा सकता है ।