वैज्ञानिकों ने ही हमारे दैनिक वन से संबंधित भोजन, चिकित्सा, यात्रा, सुरक्षा, मौसम, वस्त्र दि के बारे में जानकारी कराते हुये विज्ञान की विभिन्न शाखाओं - रसायन, भौतिक, जीव, अंतरिक्ष, सैन्य विज्ञान आदि का ज्ञान ।
इनमें से प्रसिद्ध वैज्ञानिकों के रूप में चरक, सुश्रुत, अर्जुन, कणाद, होमी जहाँगीर भाभा, प्रो. सतीश धवन, विक्रम भाई, सी0वी0 रमन, जे0सी0 बोस, ए0पी0जे0 अब्दुल आदि जाने जाते हैं। वैज्ञानिक परिचय (Scientist Introduction) आइये इन्हीं वैज्ञानिकों में से कुछ निकों के जीवन एवं उपलब्धियों से संबंधित जानकारी प्राप्त करते हैं।
1.नागार्जुन
नागार्जुन प्राचीन भारत के महान रसायन शास्त्री (Chemist), धातु विज्ञानी और चिकित्सक (Doctor) जिन्होंने रसायन विज्ञान, धातु विज्ञान और दवाइयाँ बनाने के क्षेत्र में बहुत शोधकार्य (Research) किये और पुस्तकें लिखीं।
माना जाता है कि नागार्जुन का जन्म 50 ईसा पूर्व छततीसगढ़ प्रदेश के रायपुर जिले के बालूका ग्राम में था। इन्होंने बचपन में ही वेद-वेदांगों का अध्ययन पूर्ण कर लिया तथा दुनिया को अपनी खोजों के द्वारा संदेश दिया कि वेद केवल आध्यात्मिक ज्ञान एवं पूजा पद्धति के लिये ही नहीं हैं। बल्कि विश्व का सम्पूर्ण न एवं गणित इन्हीं वेदों में निहित है। अत: इन्होंने सिद्ध किया कि विज्ञान, गणित को दृष्टि एवं दिशा वेदों
से ही प्राप्त हुई। जिस पर आज सम्पूर्ण विश्व के वैज्ञानिक शोध कर रहे हैं। नागार्जुन नें बड़े होकर सिरपुर जो महाकौशल की राजधानी थी, वहाँ से बौद्ध दर्शन का अध्ययन किया और बौद्धमत में दीक्षित हो गये।
नागार्जुन नें 12 वर्ष की उम्र में ही रसायन विज्ञान के क्षेत्र में शोध कार्य शुरू कर दिया। रसायन शास्त्र पर इन्होंने कई पुस्तकों की रचना की जिनमें 'रस-रत्नाकर' और 'रसेन्द्र-मंगल' प्रसिद्ध हैं। रसरत्नाकर में इन्होंने पेड़-पौधों से अम्ल (Acid) और क्षार (Alkali) प्राप्त करने की कई विधियाँ बताईं। उन्होंने यह भी बताया कि पारे को कैसे शुद्ध किया जाये और उससे यौगिक (Compounds) कैसे बनाये जायें। चाँदी, सोना, टिन और ताँबे की कच्ची धातु निकालने और उसे शुद्ध करने के तरीके भी बताये। दूसरी धातुयें सोने में कैसे बदल सकती हैं, अगर वह सोने में न भी बदलें तो उनके ऊपर आई पीली चमक सोने जैसी ही होगी। चिकित्सा के क्षेत्र में उनका योगदान भी उल्लेखनीय है। इस क्षेत्र में भी उन्होंने कई ग्रंथों की रचना की जिसमें प्रमुख ग्रंथ निम्नवत् है:-
1. आरोग्य मंजरी
2.कक्षपुञ्ज तंत्र
3.योगसार
4.योगाष्टक
उन्होंने पारे का शोधन कर भस्म बनाने की विधि ज्ञात की तथा विभिन्न धातुओं की मारण विधि का वर्णन भी किया। इसी मारण विधि से तैयार की गई भस्में आयुर्वेद चिकित्सा की सर्वश्रेष्ठ औषधि के रूप में जानी जाती हैं। जिनका उपयोग भिन्न-भिन्न प्रकार के रोगों के निदान के लिये करते हैं। उनके अनुसार यदि धातुओं को मारकर उसका सेवन किया जाये तो शरीर को सदैव रोगमुक्त रखा जा है।
नागार्जुन एक महान दार्शनिक थे। उनका दर्शन शून्यवाद के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उन्होंने वैदिक दर्शन एवं बौद्ध दर्शन में समन्वय स्थापित कर भारत की राष्ट्रीय एकता में महान योगदान दिया। वे नालन्दा विश्वविद्यालय के कुलपति रहे तथा आन्ध्र प्रदेश में कृष्णा नदी पर बने विशाल बाँध का नामकरण उनकी स्मृति में नागार्जुन सागर किया गया।
2 सत्येन्द्र नाथ बोस
सत्येन्द्रनाथ बोस एक ऐसे भारतीय भौतिकविद् हैं जिनका नाम आइंस्टीन के साथ सम्बद्ध है। आइंस्टीन नें बोस की प्रतिभा को पहचाना और स्वयं संसार में प्रचारित किया, लेकिन आइंस्टीन भी बोस की पूर्ण क्षमता का मूल्यांकन नहीं कर पाये, क्योंकि बोस के अनुसंधान कार्य और वैज्ञानिक फर्मी द्वारा किये गये विकास से ही नाभिकीय भौतिकी के परमाणु कणों को दो भागों में विभाजित करना संभव हुआ। इन्हीं को बोस के नाम पर बोसोन और फर्मी के नाम पर फर्मियोन कहा गया है। वैज्ञानिक परिचय (Scientist Introduction)
ऐसे महान वैज्ञानिक का जन्म 01 जनवरी 1894ई. को कोलकता में हुआ था, इनकी माता का नाम नमोरिनी देवी और पिता का नाम सुरेंद्रनाथ बोस था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा कोलकता के हिन्दू स्कूल में हुई। उच्च शिक्षा भी कोलकता विश्व विद्यालय से 1915 में भौतिक शास्त्र में पूर्ण की। आपने 1916 से 1924 तक लकता विश्वविद्यालय में प्रवक्ता एवं रीडर के पद पर कार्य किया। 1956 से 1958 तक विश्वभारती श्वविद्यालय कोलकता के कुलपति रहे। सन् 1958 में भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय प्राध्यापक नियुक्त किया तथा रायल सोसायटी लंदन के फैलो निर्वाचित किये गये। राष्ट्रीय विज्ञान संस्थान नें उन्हें 'मेघनाद साहा रक स्वर्ण पदक' प्रदान किया गया। सन् 1954 में भारत सरकार नें उन्हें 'पद्म विभूषण' से अलंकृत या । बोस द्वारा लिखित कई पुस्तकें प्रकाशित हुई उनमें से महत्वपूर्ण पुस्तकें हैं।
1.लाइट क्वांटा स्टेटिक्स (Light Quanta Statics)
2.अफीन कनेक्शन कोएफिशेंट्स ( Affine Connection Coefficient)
बोस उच्च कोटि के गणितज्ञ थे, उन्होंने सांख्यिकी की खोज आइंस्टीन से पहले की । अलबर्ट आइंस्टीन और मेघनाद साहा के साथ काम करते हुए उन्होंने "बोसोन कणों'' के व्यवहार की तीय व्याख्या विकसित की, जिसे " बोस आइंस्टीन सांख्यिकी" कहा जाता है, इन्होंने पीटर हिग्स के मिलकर गॉड पार्टिकल (हिग्स बोसॉन) की खोज की तथा 'बिग बैंग थ्योरी' को समझाया, डार्क मैटर - जाता है कि जिससे किसी पार्टिकल में द्रव्यमान होता है) और ब्लैक होल (एक ऐसी जगह जहाँ का कर्षण इतना मजबूत होता है कि इसके पास कोई भी चीज आये, चाहे रोशनी ही क्यों न हो, उसे अपने खींच लेती है) का गहरा अध्ययन किया। वैज्ञानिकों नें “हिग्स वोसोन" कण को दिव्यकण कहा और किया कि ब्रहमांड की रचना इन्हीं कणों से हुई। इन्होंने पीटर हिग्स के साथ मिलकर "हिग्स बोसान 'विकसित की, जिसमें ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे में बताया गया। हिग्सकण का नाम पीटर हिग्स के एवं बोसान कण का नाम सत्येन्द्र नाथ बोस के नाम पर रखा गया, इसी के आधार पर इन्हें बोसान" कण कहा जाता है। पदार्थ को बनाने वाले आधारभूत कणों-इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन, फोटोन, मीजोन, एल्फाकण आदि का अध्ययन करने के लिये इन्हें दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया। यह कणों के चक्रण के गुण पर आधारित हैं। सत्येन्द्र नाथ बोस ने पाया कि फोटोन पाई मीजोन, ण, ग्रेविटोन आदि कणों की चक्रण क्वांटम संख्या पूर्णाकों में है यानि शून्य अथवा एक अथवा दो न इस प्रकार है। उनके नाम पर इन कणों को बोसान कहा जाता है।
आइंस्टीन के सापेक्षतावाद में उन्होंने संशोधन किया जिससे आइंस्टीन भी उनसे प्रभावित हुए तथा आइंस्टीन ने स्वयं उनके लेखों को जर्मन की पत्रिकाओं में प्रकाशित कराया। डा0 बसु ने एक वर्ष मैडम क्यूरी की प्रयोगशाला में उन्हीं के आमंत्रण पर कार्य किया तथा एक्सरे एवं भौतिक विज्ञान से सम्बन्धित समस्याओं पर मौलिक गवेषणायें कीं। उनके द्वारा संपीडन विद्युत प्रभावों की माप आसानी से करने की कला से मैडम क्यूरी अत्यंत प्रभावित हुई।
वैज्ञानिक प्रतिभा के साथ समाज-सेवा के क्षेत्र में सक्रिय भूमिका निभाने वाला डा0 सत्येन्द्रनाथ बोस जैसा व्यक्ति शायद ही मिलेगा। सन् 1942 में एक छात्र दल को सहयोग देकर उन्होंने ढाका हाल पर तिरंगा फहराया था और जब नेताजी ने बर्लिन से भारत की जनता के नाम अपना प्रथम रेडियो भाषण दिया तो उसे कि भारत में गुप्त रूप से प्रसारित करने की व्यवस्था इन्हीं ने की थी। इतना ही नहीं इन्होंने तो उस भाषण को ढाका विश्वविद्यालय की प्रयोगशाला में सुना और टेप किया और बाद में सम्पूर्ण भारत में प्रचारित किया। उन्होंने अपने देश में ही मौलिक सृजनशील, वैज्ञानिक प्रतिभा के उदय की सम्भावना को आंका और कहा-" 'प्रत्येक वस्तु तथा प्रत्येक व्यक्ति अनन्त सम्भावना का आगार है, आवश्यकता उन्हें परखने और पहचानने की है। इसके लिये हमें गाँव-गाँव स्थापित मंदिरों की तरह विज्ञान गृहों की स्थापना करनी पड़ेगी और तभी हमारा दारिद्रय, हमारा पिछड़ापन और हमारी दुर्व्यवस्था का अन्त हो सकेगा।
सन् 1952 से 1958 तक वह राज्यसभा के सांसद रहे। 4 फरवरी सन् 1974 को 80 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। अतः सत्येन्द्रनाथ बोस एक उत्कृष्ट भारतीय भौतिक वैज्ञानिक थे। उन्हें क्वांटम फिजिक्स में महत्वपूर्ण योगदान के लिये जाना जाता रहेगा। क्वांटम फिजिक्स में उनके अनुसंधान ने "बोस आइंस्टीन स्टेटिक्स" और "बोस आइंस्टीन कंडनसेट" की आधारशिला रखी थी, "बोस आइंस्टीन सिद्धान्त" उनके नाम पर एक उप परमाण्विक कण 'बोसान' का नाम दिया गया था, जिसके लिये उन्हें 'पद्म विभूषण' से भी अलंकृत किया।
3. प्रोफेसर सतीश धवन
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के नायक प्रोफेसर सतीश धवन एक भारतीय राकेट वैज्ञानिक थे। उनका जन्म 25 सितम्बर सन् 1920ई0 को भारत के श्रीनगर में हुआ और उच्च शिक्षा संयुक्त राज्य अमेरिका में पूर्ण हुई। उन्हें भारत में प्रायोगिक तरल गति के अनुसंधान का जनक, विक्षोभ और परिसीमा परतों के क्षेत्र का प्रख्यात शोधकर्ता माना जाता है। सन् 1972 में वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के अध्यक्ष बने। इस पद पर रहते हुए वे अंतरिक्ष विभाग भारत सरकार के सचिव भी रहे तथा उन्होंने असाधारण विकास और शानदार उपलब्धियों के दौरे से भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को निर्देशित किया। इसी समय इन्होंने परिसीमा परत अनुसंधान के लिये पर्याप्त प्रयास किया। वैज्ञानिक परिचय (Scientist Introduction)
वे बेंगलूर स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान (IISC) के प्रोफेसर भी रहे। उन्हें भारत का प्रथम सुपरसोनिक विंड टनल स्थापितकर्ता माना जाता है। उन्हें वियुक्त परिसीमा स्तर प्रवाह, तीन आयामी, परिसीमा परत और ट्राईसोनिक प्रवाहों की पुनर्परतबंदी पर अनुसंधानकर्ता माना जाता है।
प्रोफेसर सतीश धवन नें ग्रामीण शिक्षा, सुदूरसंवेदन और उपग्रह संचार पर अग्रगामी प्रयोग किये। इन्हीं के प्रयासों से इनसैट (INSAT ) एक दूर संचार उपग्रह, IRS ( भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह) और ध्रुवीय प्रमोचन यान (PSLV) जैसी प्रचालनात्मक प्रणालियों का सपना साकार हुआ जिसने भारत को अंतरिक्ष की यात्रा करने वाले राष्ट्रों की श्रेणी में खड़ा कर दिया तथा मिसाइल मैन के नाम से जाने-जाने वाले महान परमाणु वैज्ञानिक ए0पी0जे0 अब्दुल कलाम को प्रेरणा एवं दिशा प्रो० सतीश धवन से प्राप्त हुई। उन्हीं की प्रेरणा से प्रो0 कलाम ने मिसाइल के क्षेत्र में देश के लिये उत्कृष्ट कार्य किये।
शाक वेब्स (Shock Waves) का अध्ययन करना और सुपरसोनिक उड़ान (ध्वनि से तेज गति) उनके अहम प्रोजेक्टों में से एक था। इन्हें " फादर आफ एक्सपरीमेंटल फ्लूइड डायनैमिक्स" कहा जाता है जिसके तहत वातावरण में मौजूद गैसों के बारे में पता लगाया जाता है। इन्होंने 60 के दशक में यात्री विमान एअरो (HS-748) की सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं को दूर किया।
03 जनवरी 2002 को सतीश धवन की मृत्यु के बाद दक्षिण भारत के चेन्नई की उत्तरी दिशा में लगभग 100 किमी की दूरी पर स्थिति श्री हरिकोटा, आंध्र प्रदेश में स्थित 'भारतीय उपग्रह प्रक्षेपण केन्द्र' का पुनः नामकरण "प्रोफेसर सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र" के रूप में किया गया। प्रो0 सतीश धवन को विक्रम साराभाई के बाद भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम (Indian Space Program) की शुरूआत करने वाले ऐसे वैज्ञानिक तौर पर जाना जाता है जिसने देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम को सही मायने में दिशा दी । तथा INSAT, IRS और PSLV के रिमोट सेंसिंग और उपग्रह संचार कार्यक्रम का काम संभाला। इन्हीं की देन है कि भारत के अंतरिक्ष मिशन मंगलयान जो 5 नवम्बर 2013 को मंगल यात्रा पर भेजा गया और जिसने 24 सितम्बर 2014 को मंगल की कक्षा में पहुँचकर इतिहास रच दिया। यह मंगलयान श्री हरिकोटा से " PSLVC-25 मार्स आर्बिटर" नाम के उपग्रह को लेकर अंतरिक्ष में रवाना हुआ। 14 नवम्बर 2008 को चंद्रयान प्रथम " आर्बिटर का मून इम्पैक्ट प्रोव" चन्द्रमा की सतह पर उतरा। चन्द्रयान-2 भारत का दूसरा चन्द्र अन्वेषण अभियान 22 जुलाई 2019 को हरिकोटा से प्रक्षेपित किया गया। इस अभियान में भारत में निर्मित एक चंद्र कक्षयान, एक रोवर एवं एक लैंडर शामिल है। जो चन्द्रमा की सतह पर चलेगा, वहीं पर विश्लेषण के लिये मिट्टियों और चट्टान के नमूनों को एकत्र करेगा तथा आंकड़ो को पृथ्वी पर भेजेगा।