फॉस्फेटिक उर्वरक
नत्रजन के साथ फॉस्फोरस की भी हमारी मृदाओं में कमी पायी जाती है। नत्रजन के साथ तो एक सुविधा यह है कि यह सहजीवी (Symbiotic bacteria) तथा मुक्त जीवी (Free Living bacteria) जीवाणुओं द्वारा वायुमण्डलीय नाइट्रोजन भूमि में यौगिकीकरण की जाती रहती हैं लेकिन फॉस्फोरस के सम्बन्ध में यह सुविधा नहीं है। यह भी एक प्रमुख आवश्यक पोषक तत्व है। मृदा में इसे केवल खाद अथवा उर्वरकों द्वारा पूरा किया जा सकता है। फॉस्फोरस के साथ में सबसे बड़ी असुविधा यह है कि इसे घुलनशील दशा में भूमि में मिलाए जाने पर भी यह अचल (अविलेय) हो जाता है।
अतः ऐसी भूमियों में भी फॉस्फोरस देने की आवश्यकता पड़ सकती है; जिसमें पहले से ही अचल (अविलय) फॉस्फोरस पर्याप्त मात्रा में मौजूद हो।
विभिन्न फॉस्फेटिक खादों तथा उर्वरक में फॉस्फोरस विभिन्न यौगिकों के रूप में पाया जाता है। फॉस्फोरस के रूप निम्नलिखित होते हैं-
(i) मोनोकैल्सिमय फॉस्फेट [CaH, (PH4)2] (पानी में घुलनशील),
(ii) डाइकैल्सियम फॉस्फेट [Ca2H, (PO4)2] (हल्के अम्ल में घुलनशील),
(iii) ट्राइकैल्सियम फॉस्फेट [Cas (PO4)2] (सान्ध्र अम्ल में घुलनशील)।
हमारी फसलों की दृष्टि से फॉस्फोरस का मोनोकैल्सियम फॉस्फेट का सर्वाधिक महत्व है क्योंकि यह पानी में विलय है। फॉस्फेट के दोनों रूप पानी में विलय नहीं है। सिंगिल सुपर फॉस्फेट में मोनोकैल्सियम फॉस्फेट पाया जाता है। यही कारण है कि सुपर फॉस्फेट के रूप में हमारे यहाँ सिंगिल सुपर फॉस्फेट का ही प्रयोग होता है। डबल सुपर फॉस्फेट में डाइकैल्सियम फॉस्फेट और ट्रिपिल सुपर फॉस्फेट में ट्राइकैल्सियम फॉस्फेट पाया जाता है। डबल सुपर फॉस्फेट हल्के अम्ल में और ट्रिपिल सुपर फास्फेट सानु अम्ल में ही घुनलशीलन होता है। इसलिए डबल और ट्रिपिल सुपर फास्फेट प्रायः नहीं किया जाता। परन्तु सामान्य परिस्थितियों में विलय फॉस्फोरस कुछ यौगिक जैसे कैल्सियम बाइकार्बोनेट आदि की सहायता से अविलय रूप में बदल जाता है जो कुछ समय के लिए फसलों के लिए अप्राप्य हो जाता है। इसे फॉस्फेट का यौगिकीकरण कहते हैं सामान्यतौर पर जितना फॉस्फेट भूमि में दिया जाता है और समय में केवल फॉस्फेट 20-30% ही प्रयोग हो पाता है। अतः फॉस्फेटिक उर्वरकों को बड़ी सावधानी से प्रयोग करना चाहिए।
प्रमुख फॉस्फेटिक खादें
1. हड्डी का चूरा (Bone-Meal) — हड्डियों में पर्याप्त मात्रा में फॉस्फेट होता है। हड्डियों को पीसकर हड्डियों का चूरा किया जाता है। यह दो प्रकार का होता है या तो हड्डी को सूखा ही पीस लेते हैं अथवा भाप में उबाल कर पिसाई की जाती है। पहली दशा में हड्डी के चूरे में 22% फॉस्फोरस व 3% नत्रजन होती है लेकिन सूखी हड्डी पीसने में परेशानी होती है। परन्तु उबालकर पीसने पर 28% P2O; होता है। उबलने से यह नरम हो जाती है, जो आसानी से पिस जाती है तथा खेत में शीघ्र गल जाती है। भाप में उबालने से हड्डियों में अनेक प्रकार के रहने वाले बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं छोटे पैमाने पर हड्डी की खाद बनाने के लिए बोन डाईजैस्टर नामक यंत्र का प्रयोग किया जाता है जो भाप द्वारा हड्डियों को नरम व चिकनाई रहित कर देता है। बाद में बैलों द्वारा चक्की में हड्डी डालकर पिसाई की जाती है।
2. सुपर फास्फेट – यह भूरे सफेद रंग का चूर्ण है जो जल में अपूर्ण रूप से घुलता है।
यह तीन प्रकार के होते हैं-
(अ) सिंगल सुपर फास्फेट - 15 - 16% P2O5 1
(ब) डबल सुपर फास्फेट – 30-32% P2O5 1
(स) ट्रिपल सुपर फास्फेट 45-48% P2O5 1
प्रायः वही उर्वरक प्रयोग करने चाहिए जिनमें मोनोकैल्सियम फास्फेट पाया जाता है। यह पानी में घुलनशील होता है। प्रायः सभी फसलों के लिए सुपर फास्फेट लाभदायक होता है। परन्तु दलहनी फसलों के लिए यह विशेष लाभदायक होता है। कार्बनिक खादों के साथ प्रयोग करने पर फसलोत्पादन के अच्छे परिणाम प्राप्त हुए हैं ।
3. डाई अमोनियम फास्फेट (D.A.P.) – D.A.P. ऐसा उर्वरक है जिससे नाइट्रोजन और फॉस्फोरस दोनों मिलते हैं। इसमें 18% नाइट्रोजन और 46% फास्फोरस उपलब्ध होता है। यह हल्के कत्थई रंग का दानेदार उर्वरक है। इसका प्रयोग बुवाई के समय कूंडों में करना चाहिए। कुछ फसलों में इसका 2% का घोल पत्तियों पर छिड़क सकते हैं। इसका असर मृदा में हल्का अम्लीय होता है। प्रायः सभी फसलों के लिए इसका प्रयोग सुगमता से किया जा सकता है।
फास्फेटिक उर्वरकों के प्रयोग करने की विधि एवं समय
फास्फेटिक उर्वरकों को सदा बुवाई के समय कूंडों में दिया जाता है क्योंकि जड़ों के पास रहने पर इसका प्रयोग आसानी से कर लेते हैं। खेत के ऊपर देने से अधिकांश उर्वरक बेकार चला जाता है। खेत में देने के बाद ये उर्वरक स्थिर हो जाते हैं अत: इन्हें बुवाई के समय ही स्थापित विधि (Placement) द्वारा खेत में देना चाहिए ताकि जड़ें वृद्धि करके इनके सम्पर्क में शीघ्र आ जाये।