लॉर्ड कर्जन की भारतीय शिक्षा को देन
लॉर्ड कर्जन जनवरी 1889 ई. में भारत के गर्वनर जनरल होकर भारत आये थे। वे स्वभाव से उदार कुछ स्वेच्छाधारी उपासक थे। वे केन्द्रीयकरण एवं कार्य क्षमता के पक्षधर थे । एक कुशल प्रशासक महान कूटनीतिज्ञ, पाश्चात्य संस्कृति तथा सभ्य के पुजारी थे। उनका मानना था कि एशियाई जातियों का उद्धार केवल पाश्चात्य संस्कृति एवं सभ्यता के प्रसार से ही सम्भव है । उन्होंने अपने सात वर्षों के शासनकाल में जो भी कार्य किए उन्हें कोई अन्य व्यक्ति दुगुने अथवा तिगुने समय में भी नहीं कर पाता।
उन्होंने भारतीय शिक्षा को एक नवीन जीवन प्रदान किया और सन् 1895 के पश्चात् शिक्षा तीव्र गति से आगे बढ़ी और उसकी आश्चर्यजनक प्रगति हुई। लॉर्ड कर्जन ने अपने शासनकाल में तत्कालीन भारतीय शिक्षा में व्याप्त दोषों का विस्तृत विवेचन किया तथा उन्हें दूर तक करने के उपाय भी सुझाए । परन्तु जैसा कि पहले भी बताया जा चुका है, शिक्षा पर अधिक सरकारी नियन्त्रण की नीति को भारतीयों ने पसंद नहीं किया। लॉर्ड कर्जन जिस नीति का अनुगमन करके भारतीय शिक्षा को समुन्नत करना चाहता था उसके प्रति भारतीय जनसाधारण सशंकित था । लॉर्ड कर्जन ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सुधार करने के कार्य को विशेष प्राथमिकता दी । प्राथमिक शिक्षा वह सभी को दिए जाने का पक्षधर था लेकिन उच्च शिक्षा को सरकारी नियन्त्रण में चलकर कुछ गिने-चुने लोगों को ही प्रदान करने का पक्षपाती था ।
फिर भी उन्होंने भारतीय शिक्षा के विकास में जो योगदान लॉर्ड कर्जन ने दिया उसके लिए भारत सदैव उनका ऋणी रहेगा। यदि उनका स्वभाव संयत होता और वे भारतीय जनता की सहानुभूति और सहयोग प्राप्त कर पाते तो अपने प्रयासों में वे और अधिक सफल हो जाते ।
भारतीय शिक्षा के विकास में लॉर्ड कर्जन ने निम्नांकित देन और प्रयास हैं-
1. विश्वविद्यालय का पुनर्संगठन तथा उच्च शिक्षा का स्तर ऊँचा उठाना — लॉर्ड कर्जन ने अपने शिक्षा सम्बन्धी कार्यक्रमों में विश्वविद्यालयों के सुधार पर सबसे पहले ध्यान दिया। सन् 1902 में भारतीय विश्वविद्यालय आयोग की नियुक्ति विश्वविद्यालयों की स्थिति और उनकी भविष्योन्नति की जाँच करने, उनके विधान और कार्य-प्रणाली को सुधारने तथा उनका शिक्षण स्तर ऊँचा उठाने के लिए सुझाव देने हेतु की। 1904 ई. में कर्जन की सरकार ने भारतीयों की परवाह न करते हुए भी भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम पारित कर दिया जिसके अनुसार-
(i) विश्वविद्यालयों का कार्यक्षेत्र अधिक व्यापक कर दिया गया, क्योंकि वे अब परीक्षा लेने के साथ शिक्षण कार्य भी कर सकते थे।
(ii) सीनेट के सदस्यों की संख्या कम-से-कम 50 से अधिक-से-अधिक 100 का दी गयी ।
(iii) बम्बई, कलकत्ता और मद्रास के विश्वविद्यालयों में सीनेट के निर्वाचित सदस्यों की संख्या 20 और अन्य विश्वविद्यालयों में 15 से अधिक न होगी ।
(iv) विश्वविद्यालयों के सिंडीकेट में प्राध्यापकों का उचित प्रतिनिधित्व अवश्य कर दिया गया।
(v) विश्वविद्यालयों द्वारा मान्यता चाहने वाले महाविद्यालयों के लिए नियम कठोर बना दिए गये। सिंडीकेटों को अधिकार दिया गया कि मान्यता प्राप्त महाविद्यालयों का निरीक्षण कर उसका स्तर ऊँचा उठावें ।
(vi) सरकार को अधिकार दिया गया वह सीनेट द्वारा बनाए गये नियमों में संशोधन अथवा परिवर्द्धन कर सके और जरूरत पड़ने पर स्वयं विश्वविद्यालय के लिए बना सकें ।
(vii) प्रत्येक विश्वविद्यालय का क्षेत्राधिकार निश्चित कर दिया गया ।
विश्वविद्यालय अधिनियम (1904) के पारित होने से विश्वविद्यालयों का संचालन पहले की अपेक्षा अधिक अच्छी तरह से होने लगा, सीनेट के सदस्य अधिक कर्तव्यनिष्ठ होने लगे, विश्वविद्यालयों में पुस्तकालयों और वाचनालयों की व्यवस्था हो गयी । उच्च गे बढ़ी शिक्षा का स्तर ऊँचा हो गया, निरीक्षण की समुचित व्यवस्था की गयी और उन महाविद्यालयों को बंद कर दिया गया जो शिक्षा के स्तर को ऊँचा बनाए रखने में असमर्थ थे।
2. माध्यमिक शिक्षा की गुणात्मक वृद्धि- लॉर्ड कर्जन ने माध्यमिक शिक्षा के सम्बन्ध में जो नीति अपनायी उसमें दो विशेषताएँ थीं। तटस्थता को छोड़कर माध्यमिक शिक्षा पर सरकारी नियन्त्रण लगा दिया गया, उसकी संख्यात्मक वृद्धि के स्थान पर गुणात्मक वृद्धि पर बल दिया गया-
(i) माध्यमिक शिक्षा पर नियन्त्रण-शिक्षा विभाग द्वारा अब केवल उन विद्यालयों को मान्यता दी जा सकती थी जिनकी स्थापना उस स्थान पर हो जहाँ उनकी माँग हो, जिनकी प्रबन्ध समिति की आर्थिक दशा ठीक हो और जो भली-भाँति गठित हो, जिनमें शिक्षक सच्चरित्र तथा अध्यापन कार्य में रुचि लेने वाले हों, जिनमें छात्रों के स्वास्थ्य, मनोरंजन, अनुशासन, शिक्षा आदि के लिए समुचित व्यवस्था हों ।
विश्वविद्यालयों द्वारा मान्यता प्राप्त करना प्रत्येक माध्यमिक विद्यालय के लिए अनिवार्य कर दिया गया। यदि कोई माध्यमिक विद्यालय अपने क्षेत्र के विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त नहीं कर पाता है तो उसके छात्र मैट्रिक की परीक्षा में नहीं बैठ पायेंगे ।
मान्यता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों को ही अपने विद्यार्थियों को राज्य संचालित परीक्षाओं में बैठने की अनुमति दी जा सकती थी, उनको ही सहायता अनुदान मिल सकता था।
(ii) माध्यमिक विद्यालयों का गुणात्मक विकास—प्रत्येक जिले में एक माध्यमिक विद्यालय स्थापित किया गया जिसको आदर्श मानकर गैर-सरकारी हाई शिक्षण कार्य करें। छात्रों के शिक्षा स्तर को ऊंचा उठाने के लिए सरकार की ओर है निरीक्षण का उचित प्रबन्ध किया जाए। मिडिल स्कूलों में शिक्षा का माध्यम भारत भाषाएँ रखी जायें साथ ही अंग्रेजी भाषा का उचित ज्ञान दिया जाए। माध्यमिक विद्याल के अध्यापकों के प्रशिक्षण के लिए उचित प्रबन्ध किया जाए। पर्याप्त संख्या में प्रशिक्षण महाविद्यालय खोले जाएँ ।
3. प्राथमिक शिक्षा की उन्नति - प्राथमिक शिक्षा की उन्नति के सन्दर्भ में लाई कर्जन ने निम्नलिखित सुझाव दिए—
(i) पाठ्यकम में लिखने-पढ़ने के साथ कृषि की भी शिक्षा दी जाए।
(ii) अध्यापकों को कृषिशास्त्र का अध्ययन करने का मौका दिया जाए ताकि वे ग्रामीण विद्यालयों में कृषि की शिक्षा दे सकें ।
(iii) अध्यापकों को प्रशिक्षण की समुचित व्यवस्था हो अधिक प्रशिक्षण विद्यालय खोले जाएँ।
(iv) परीक्षाफल के अनुसार वेतन प्रणाली के स्थान पर शिक्षकों की योग्यता, विद्यालयों की कार्य-कुशलता तथा उनकी संख्या को ध्यान में रखकर सहायता अनुदान देने की प्रणाली को शुरू किया जाए। इस प्रकार लॉर्ड कर्जन ने प्राथमिक विद्यालयों के आर्थिक सहायता, शिक्षक-प्रशिक्षण की व्यवस्था और पाठ्यक्रम में सुधार लाकर प्राथमिक शिक्षा की उन्नति के प्रयास किए।
4. मातृभाषा को माध्यम बनाकर भारतीय भाषाओं का विकास- लॉर्ड कर्जन ने मातृभाषा को माध्यमिक स्तर पर शिक्षा का माध्यम बनाकर भारतीय भाषाओं का विकास करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
5. कृषि प्रधान देश के लिए कृषि शिक्षा की व्यवस्था -लॉर्ड कर्जन ने इस दिशा में निम्नांकित कार्य किए-
(i) देश के प्रत्येक प्रान्त में कृषि विभाग स्थापित किए और कृषि शिक्षा को इनको सौंप दिया।
(ii) माध्यमिक विद्यालयों के पाठ्यक्रम में कृषि विषय का समावेश कर दिया।
(iii) भारतीय भाषाओं में कृषि-शिक्षा की पुस्तकें प्रकाशित करवायीं।
(iv) बिहार में पूसा नामक स्थान पर कृषि अनुसंधानशाला की स्थापना करायी । कृषकों को कृषि की शिक्षा देने के लिए विशेष कक्षाओं का आयोजन कराया।
6. केन्द्रीय शिक्षा विभाग की स्थापना–वुड के घोषणा-पत्र (1854) के अनुसार प्रान्तों में शिक्षा विभाग की स्थापना तो ही गयी लेकिन इनके कार्यों में समन्वय उत्पन्न करने के लिए कोई संस्था न थी । लॉर्ड कर्जन ने केन्द्रीय शिक्षा विभाग की स्थापना करके शिक्षा को सुव्यवस्थित कर दिया।
7. विदेशों में अध्ययन के लिए छात्रवृत्तियों की व्यवस्था — विद्यार्थी समाज के लिए लॉर्ड कर्जन ने सबसे बड़ा महत्वपूर्ण कार्य यह किया कि कुशाग्र बुद्धि वाले छात्रों को छात्रवृत्तियाँ देकर प्राविधिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए विदेश भेजना शुरू कर दिया ।
8. पुरातत्व विभाग की स्थापना- लॉर्ड कर्जन ने प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम पारित कराकर प्राचीन स्मारकों के संरक्षण की व्यवस्था की और उनको नष्ट होने से बचाया ।
9. कला की शिक्षा को प्रोत्साहन-लॉर्ड कर्जन ने कला विद्यालयों में भारतीय कला क. शिक्षा देने पर बल दिया। कला की शिक्षा में ऐसा पाठ्यक्रम रखने का सुझाव दिया गया जिससे छात्र धनोपार्जन भी कर सकें लेकिन कला विद्यार्थियों को व्यावसायिक विद्यालयों का रूप न दिया जाए।
उपर्युक्त लॉर्ड कर्जन के प्रयासों का विश्लेषण करने से स्पष्ट हो गया होगा कि लॉर्ड कर्जन ने भारतीय शिक्षा के विकास में जो अमूल्य योगदान दिया उसके लिए भारत सदैव उनका ऋणी रहेगा। लॉर्ड कर्जन ने शिक्षा के स्तर को ऊँचा उठाने के लिए जो प्रयास किए पक कृषि उनके लिए भारतवासियों की अनेक पीढ़ियाँ उसका गुणगान करेंगी।